छत्तीसगढ़ सरकार बेहत्तर शिक्षा व्यवस्था का भले ही दावा करे, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। धुर नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले के परलभाट में प्राथमिक शाला का संचालन एक कमरे में किया जा रहा है। यहां पहली से लेकर पांचवीं कक्षा तक के बच्चे सिर्फ एक कमरे में बैठते हैं। शिक्षक एक तरफ कक्षा पहली से लेकर तीसरी तक के बच्चों को पढ़ाते हैं तो दूसरी तरफ कक्षा चौथी और पांचवीं की क्लास लगती है। बीच में सिर्फ एक कपड़े का पर्दा होता है। ऐसे में देश का भविष्य कैसे संवरेगा यह बड़ा सवाल है। अफसरों का कहना है कि माओवादियों की वजह से निर्माण में दिक्कत है।
नारायणपुर जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर खोडग़ांव ग्राम पंचायत का आश्रित ग्राम परलभाट है। यहां प्राथमिक स्कूल संचालित है। 30 बच्चे पढ़ते हैं और दो शिक्षकों की यहां तैनाती है। बच्चों को शिक्षक पढ़ा तो रहे हैं, लेकिन अव्यवस्था भारी पड़ रही है। एक कमरे के इस स्कूल में बाउंड्री में लगे सौर ऊर्जा के खंबों की बैटरी, मध्यायन भोजन का राशन, स्कूल की आलमारी सहित अन्य सामानों रखे हैं। सामान रखने के बाद बची जगह पर बैठकर बच्चे ज्ञानार्जन करते हैं। बच्चों में पढ़ने की लगन और शिक्षकों में पढ़ाने की दृढ़ इच्छाशक्ति के सामने सरकारी अव्यवस्था और लाल आतंक भारी है। नारायणपुर के डीईओ जीआर मंडावी कहते हैं कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से दिक्कत आती है। नए भवन के लिए प्रस्ताव बनाकर भेजा जाएगा। व्यवस्था ठीक करने का प्रयास करेंगे।
टंकी पर पानी नहीं, विद्युत कनेशन देना भूल गया विभाग
अव्यवस्था का आलम इस एक कमरे की व्यवस्था पर समाप्त नहीं हो जाता। यहां शौचालय तो तीन बने हैं, लेकिन उपयोग के लायक एक भी नहीं हैं। स्कूल में हाथ सफाई के लिए पानी की टंकी और पाइप लाइन भी बिछाई गई, लेकिन पानी का कनेक्शन ही नहीं दिया गया है। स्कूल के कमरे में बिजली कनेक्शन व मीटर भी है, लेकिन शासन के जिम्मेदार विद्युत कनेक्शन ही देना भूल गए हैं। ऐसे में गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का सपना कैसे साकार होगा। सरकार के नुमाइंदे अच्छी और गुणवत्तायुक्त शिक्षा का दावा करते हैं, लेकिन वनांचल एक स्कूल सरकार के दावों की पोल खोल रहा है।
बीएसपी ने रावघाट क्षेत्र के 22 गांवों को लिया है गोद
ग्रामीणों का कहना है कि 2007 में रावघाट माइंस के प्रभावित 22 गांवों को भिलाई इस्पात संयंत्र (बीएसपी) ने गोद लिया था, जिसमें परलभाट गांव भी शामिल है। बीएसपी प्रबंधन ने माइंस प्रभावित गांव में विकास के दावे किए थे, लेकिन रावघाट में खनन में देरी से बीएसपी ने भी इस गांव पर ध्यान नहीं दिया। 14 साल बीतने के बाद भी जमीनीस्तर पर संयंत्र प्रबंधन ने कुछ नहीं किया। ग्रामीणों का कहना है कि हमारे गांव की खनिज संपदा को खनन करके ले जाने की तैयारी की जा रही है। हेमंत संचेती ने बताया कि गांव का विकास किए बगैर खनिज संपदा नहीं लेकर जाने की बातें ग्रामीण कहते हैं।