कबीरधाम!दरशल मामला है जिले के उन क्षेत्रों का जंहा राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले बैगा अनुसूचित जनजाति के लोग निवास करते हैं जिनके मूलभूत सुविधाओं के लिए बस्तर विकास प्राधिकरण जैसे दर्जनों योजनायें बनाया गया है जिसका उपयोग मात्र कागजों में हो रहा है गर धरातल की बात करें तो लोग आज भी शासन की मूलभूत सुविधाओं से अपरिचित है।
जंहा न तो तालाब नसीब है और न ही एक हैंडपंप इन्हीं मूलभूत सुविधाओं से प्रशासन को रूबरू कराने पहोचे समाज सेवी कामू बैगा जो पिछड़ी जनजाति के लिए आज एक आवाज़ ही नहीं बल्कि उनकी एक उम्मीद है कामू बैगा अपने समाज के सैकड़ो लोगो के साथ आज जिला मुख्यालय पहोचे व उन्हें मिलने वाले उन मूलभूत सुविधाओं से वंचित क्षेत्रों की ओर प्रशासन का ध्यान आकर्षित किये ताकि शासन से मिलने वाली योजनाओं से अपरिचित बैगा वनवासियों को वह लाभ मिल सके जिनके वो हक़दार है।
साथ ही समाजसेवी कामू बैगा का कहना है की जिले के विकास खंड बोड़ला और पंडरिया क्षेत्र में निवास करने वाले विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा आदिवासी अब भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं वह भी तब जब की सरकार ने इसके विकास के लिये विशेष रूप से एक प्राधिकरण का गठन भी कर रहा हैं। दूरस्थ वन ग्रामों में निवास करने वाले इस आदिवासियो के गांवो तक ना तो पहुंचने के लिये मार्ग है और ना ही गांव में स्वास्थ्य सुविधाएं, लेकिन बात सिर्फ इतने तक ही होती तो भी कम था, जिले के कई हिस्सो में इन बैगाओं के पीने के लिये स्वच्छ पानी तक नही है। जिसके कारण मजबूरी में इस जाति लोग झिरियां का पानी पीने को मजबूर है।
ताजा मामला जिले की बोड़ला तहसील के
ग्राम पंचायत केसदा, बोदाई, मुंडा दादर, चेन्द्रादादर, बांकी, सरोधा, दुर्जनपुर, जैसे दर्जनों गांवों में निवास करने वाली बैगा समुदाय के लोगों के लिए पीने के पानी के लिये गांव में ना तो कोई हैड़पंप है और ना ही कोई नलजल योजना से लाभ मिलने वाली सोलर पैनल चलित पानी टँकी, यहां के बैगा परिवार बताते है कि उनके यहां पर कोई हैंडपप नही हैं जिसके कारण गांव से लगकर बहने वाली छोटी झिरियां के पानी से उन्हे अपनी प्यास बुझानी पड़ती है।
प्राकृतिक जलस्रोतो पर निर्भर
कुछ ऐसे ही हालात तहसील पंडरिया क्षेत्र के आने वाले दर्जनो गांवो में भी , जहां इनके मूलभूत अधिकार, वनाधिकार और मानव अधिकार का रोजाना हनन हो रहा जंहा हैंडपंप है ही नही और अगर किसी बस्ती में है भी तो बंद पड़े है। ऐसे में आदिवासी बैगाओ को पानी जैसी मूलभूत सुविधा के लिये दर-बदर की ठोकरे खानी पडती है। इन्हे पेयजल के लिये प्राकृतिक जलस्त्रोतो और झिरिया पर निर्भर होना पड रहा है। ऐसे हालात अधिकांश बैगा आदिवासी गांवो में देखने मिलेगें।
वनाधिकार पट्टे भी नही बने
देश में आदिवासियों की 72 जनजातियों में सबसे पिछडेपन का दंश भोग रहे बैगा जनजाति के लोगो के पास आज भी वनाधिकार के पट्टे नही है। , जबकि कई पीढिय़ों से बैगा जनजाति के लोग घने जंगलो में निवास कर रहे है। इनके सामने सबसे बडी विडम्बना यह है कि ये आज भी पारम्परिक खेती के तौर पर कोदो कुटकी का उत्पादन करते है। जिसके लिये उन्हे वन विभाग की भूमि पर ही कृषि करना पडता है। कई बार विभागीय अधिकारी इन्हे कृषि कार्य करने से रोक देते है, जिससे उनके सामने जीविका उपार्जन के लिये जरूरी भोजन को लेकर भी संघर्ष करने की नौबत आ जाती है। इन वनवासियों की प्रमुख मांग उनके गांवो में वनअधिकार पट्टो की है।
जिले में ऐसे भी स्थान है जँहा पर आदिवासी राशन लेने तय करते है 15 कि.मी. का सफर
विकास खंड बोड़ला क्षेत्रांतर्गत ग्राम पंचायत बोदा03 के आश्रित ग्राम कुरलुपानी जैसे अनेको ग्राम पंचायतो में बैगा आदिवासीयों को आज भी जीवन उपार्जन के लिये शासकीय अनाज के लिये कोसो दूर पैदल चलना पडता है। लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित चलकर आने के बाद ही बमुश्किल उन्हे राशन मिल पाता है। कई कि.मी. कच्चे रास्ते से गुजरना पड़ता है। जिसके कारण बारिश के दिनो में अक्सर नदी नाले उफान पर होते है तब इनकी समस्यायें और भी ज्यादा बढ जाती है। सबसे बडी समस्या तो इन बैगा समुदायो के जीवन मानक स्तर की हैं जिनके रहन सहन का तरीका आज भी पारंपरिक है। मैले कुचैले कपडो में, कभी नग्न, तो कभी अर्धनग्न अवस्था में नजर आते बैगा बच्चे जिनके लिये शिक्षा के साधन भी इस क्षेत्र में नही है।
माइंस का गढ़ कहे जाने वाले दलदली क्षेत्रांतर्गत बसे अति पिछड़ी जनजाति बैगा आदिवासीयों से भारत एल्मुनियम कंपनी ( बाल्को ) ने किया धोखा
दलदली व आसपास के गांव में करीब 670 हेक्टेयर जमीन को बाक्साइड खोदाई के लिए भारत एल्युमिनियम कम्पनी (बालको)समेत अन्य कंपनी ने 1997 से 2017 तक 20 सालो के लिए क्षेत्र के आदिवासी बैगा जनजाति के भूमि को लीज पर लिया गया था। लीज पर यह साफ साफ दर्शाया गया था कि लीज पूरा होने पर कृषको की जमीन समतलीकरण कर वापस करने की बात हुई थी परंतु आज पर्यन्त तक समतलीकरण तो दूर की बात है आज तक उनकी जमीन भी वापस नहीं किया गया है। सूत्रों की माने तो साथ ही बताया जा रहा है कि कृषको की बिना सहमति व जानकारी की लीज को 2047 तक बढ़ा दिया गया है। कृषकों ने जमीन वापसी की मांगों को लेकर सैकड़ो क्षेत्र वासियों व अपने समाज के जिला अध्यक्ष कामू बैगा के साथ कलेक्टर को ज्ञापन दिया साथ ही प्रशासन को चेतावनी भी दिए कि गर हमारी मांगे पूरी नहीं होती है तो हमे उग्र आंदोलन करना पड़ सकता है।